होंगे जेब में पैसे चार,
दिन बदलेंगे अपने यार।
तितली के रंगों के जैसे
रंग बिरंगे सपने मेरे,
मेरे सपनों के रंगों को
जाने कब खा गए बाजार...
पांच साल का बेटा मेरा
मांगे मुझसे खेल खिलौने,
घर में रूठी है पटरानी
वो मांगे सोने का हार...
माई-बाप ने पाला पोसा
सुख सुविधा के देखे सपने,
उनकी जिज्ञासा अब ये है
सपने होंगे कब साकार...
उनकी बूढ़ी आंखें जब तब
आसमान को उठ जाती हैं,
भेद कलेजा अंतरिक्ष का
जाना चाहे हैं उस पार...
लंबे लंबे हाथ हैं जिनके
उचक के छू लें आसमान को,
मैं अपने बौने डैनों से
कैसे करूं िक्षतिज को पार...
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ब्लॉग जगत में स्वागत रईस भाई. बहुत अच्छी काव्यात्मक पेशकश के साथ इस दुनिया में आपने क़दम रखा है. निरंतरता बनाए रखें, यही आग्रह.
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