गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015



सीमांचल के 24 सीटों पर 390 दावेदार

राजनीतिक तौर पर इस बार सीमांचल की धरती कुछ खास है। वो बस इस लिए नही कि यहां चुनाव आखिरी चरण में होना है। बल्कि इसलिए कि एनडीए गठबंधन और महागठबंधन की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। दोनों के लिए सीमांचल किसी अग्नि परीक्षा से कम नही है। एक तरफ एनडीए पिछले लोक सभा चुनाव में देश भर में मोदी लहर के बावजूद मिली करारी हार से उबरना चाहता है तो दूसरी तरफ महागठबंधन लोकसभा में मिली जीत को दोहराना चाहत है। दोनों ही गठबंधनों को अपने लक्ष्य को पाने के लिए लोहे के चने चबाने होंगे। यही वजह है कि दानों गठबंधनों ने अपनी पूरी ताकत सीमांचल में झोंक दी है।
सीमांचल के चारों जिलों में कुल 24 सीटें हैं। जिसके लिए कुल 390 उम्मीदवार मैदान में हैं। सबसे अघिक भाजपा ने 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारें हैं। उसके बाद कांग्रेस 10 और जदयू 9 सीटों पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कांग्रेस इन 10 सीटों के बहाने बिहार में बंजर हो चुकी अपनी राजनीतिक जमीन को फिर से उपजाउ बनाने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि राहुल गांधी पांच जन सभा कर रहे हैं। गुलामनबी आजाद भी लगातार सीमांचल में जमें हुए हैं। राजद ने भी पांच सीटों अपने प्रत्याशी उतारे हैं। इनके अलावा रालोसपा 2 सीटों पर, लोजपा और हम क्रमश: तीन और एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने छह और पप्पू यादव ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर सीमांचल में मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। इस बार के मुकाबले में सीमांचल के चार मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पूर्णिया की धमदाहा सीट से मंत्री लेसी सिंह, रुपौली सीट से मंत्री बीमा भारती, कटिहार की बारसोई सीट से मंत्री दुलालचंद्र गोस्वामी और किशनगंज की ठाकुरगंज सीट से मंत्री नौशाद आलम शामिल हैं।
जैसे जैसे चुनाव के दिन यानी पांच नवंबर नजदीक आता जा रहा है हर चौक चौराहे और चाय की दुकान पर चुनावी चर्चा भी तेज होती जा रही है। इस बात  को सीमांचल की जनता भी समझती है कि चुनाव से लोगों की सस्याएं गायब हो गई हैं। कहीं पर भी दो सौ बीस रु किलो दाल की चर्चा नही हो रही है। अगर बात हो रही है तो ये कि मुसलमान और यादव वोटर के मन में क्या चल रहा है। स्पष्ट है कि विकासवाद पर जातिवाद हावी हो गया है। सज्जाद कालोनी के मोहम्मद इसराइल साहब की चिंता भी यही है कि यादव वोट बिखर क्यों रहा है। मुसलमान इस बार एक जुट हो रहे हैं कि नही। शेख सौकत अली कहते हैं कि आज भी चुनाव का रंग रुप बदला नही है। आज भी अंत अंत में जात पात की ही बात होने लगती है। लोगों की बातों से साफ लगता है कि मुसलमान और यादव वोटर पर ही सबकी निगाह टिकी हुई है। और तमाम पाटियों के उम्मीदवारों को देखने से लगता है कि इस बार किसी एक की हवा यहां पर नही चल रही है। न ही एक की दाल गलती नजर आ रही है। कहा जा जसका है कि इस बार मुकाबला दिलचस्प होगा। किसकी दाल गली ये तो वोट की गिनती के बाद ही पता चलेगा।